रविवार, 26 जुलाई 2009

सेहतमंद रहने के लिए उपयुक्त पुस्तक "लूस योर वेट " रुजुता दिवेकर

रुजुता ने न सिर्फ़ मेरे शरीर को बदला,बल्कि मेरी आत्मा और विचारों को भी बदला ।
सी इस बेस्ट थिंग टू हेव हेप्पन टू माय लाइफ ।
करीना कपूर ।

अपना वजन घटाने और सेहतमंद रहने के लिए । नई शैली की यह पुस्तक भोजन एवं डाइटिंग के प्रति आपका नजरिया ही बदल डालेगी । "लूस योर वेट - डोंट लूज़ योर माइंड "

इस पुस्तक की भाषा बहुत ही रोचक , दिलचस्प और अत्यन्त सरल है,खास बात यह है , की इस बुक में आपको बड़े बड़े नामों वाली हाई क्लास डाई टिंग मटेरिअल की जगह , आसानी से उपलब्ध चीज़ें बाताई गयीं हैं ।
सो प्लीज़ एन्जॉय ।

मंगलवार, 16 जून 2009

पूर्वानुमान लगायें भविष्य की परेशानियों से बचें

अधिकतर हमारे साथ जीवन में ऐसी परिस्थिती बन जाती है की , समझ नहीं आता की क्या करें , हमने जिस पर भरोसा किया वोही धोखेबाज निकला ,फिर आता है क्रोध स्वयं की बुद्धि पर की क्यों हमने ऐसे व्यक्ति पर विस्वास जताया ।
अगर देखा जाए तो , हमने सही तरह से अपने अवचेतन को नहीं सुना , जब जब बारिश होती है तो पहले घटा उमड़ आती है ,यह सूचक होती है , की बन्धु अब बारिश होने वाली है ,अपने अपने छप्पर ठीक कर लो ,
हमें व्यक्ति के विचारों से उसके इरादों का पता लगाना चाहिए ,यह बहुत ही सहज है ।
हम हमारे आस पास के माहोल की चर्चा सम्बंधित व्यक्ति से करके भी यह मालुम कर सकते है की उसके विचार कैसे हैं ।
लोगों को ज्यादा बोलने का मौका दें कितना भी चालाक ,धूर्त व्यक्ति क्यों न हो , आपके सजग विवेक के आगे उसकी बातों की मलाई कवरिंग बहुत ज्यादा देर तक टिक नही पाएगी ।
(कृपया परखते वक्त पूरी तरह से पूर्व आग्रहित न हों )

वैसे हिन्दी में एक कहावत है , " दमड़ीकी हंडिया चली गई , कुत्ते की जात तो पता चल गई "
परीक्षा के उद्देश से आमंत्रण इतने खुले भी न हों , की जिसका ईमान न डोलता हो ,तो डोल जाए ।

गुरुवार, 11 जून 2009

समझ नहीं आता राम को जानूं के मानू

आज अमेरिका , ब्रिटेन जैसे तरक्की कर कहाँ से कहाँ पहुंचे ,जबकि भारत विश्व धर्म गुरु रहा है । धर्म यानि सत्य ;समाज में सहकारिता के साथ जीवन जीने के लिए एक नियोजित कार्यक्रम । अगर हम इस डेफिनेशन के साथ धर्म को समझें , तो देश , काल , परिस्थिति में चमत्कारिक बदलाव हो ,
" लेकिन हम भारतीय चमत्कारिक ढंग से अपनी स्थिति सुधरने में , विस्वास करते हैं , जबकि उपरोक्त विकसित देश चमत्कारिक ढंग से अपनी स्थिति सुधारने में विस्वास करते हैं । "
हमने अवतारों के साथ काफ़ी हद तक अन्याय किया ,हमने राम के साहस की प्रसंशा की ,लेकिन यह न देखा की , ३ जगत में जिस रावण का डंका बजता हो, मृत्यु जिसके पलंग के पाये से बंधी रहती हो , अपने पुत्र जन्म के समय जो अक्काश मंडल में जाकर ग्रह स्तिथि का निर्माण स्वयम करके आया हो , और ग्रहों से कहकर आया हो " हिल मत जाना मेरी बताई जगह से " । यह बातें क्या उस ज़मानेमें किसी ने राम के साहस को डिगाने लोगों ने बताई न होंगी । आज अगर हम किसी दुसरे मुहल्ले के चुरकुट गुंडे से भी भिड जाएँ तो ,लोग कहते हैं , अरे भइया कहाँ लगे हो , उसके सर पर मंत्री जी का हाथ है , टीआई तक उससे नज़रें नहीं मिला पाता।
महज़ जनेऊ , और धनुष बाण , लिए राम चल दिए थे , विश्वविजेता को मजा चखाने ।
सीताजी का अपरहण वनवास के १४ वे साल में हुआ था , राम चाहते तो , दूसरा विवाह कर सकते थे , उस ज़माने में यह बड़े सम्मान के साथ सम्भव था । चाहते तो कह देते , पता नहीं कहाँ चली गई , हम तो जंगल में फल-फूल लेने गए थे ।
अवतारों को अपने अवतार होने का कत्तई ज्ञान नहीं होता , उन्हें अवतार माना जाता है । कसोत्तियों पर उतरने के बाद ।

आइये विचार करें ।

रविवार, 7 जून 2009

१८९३ अमेरिका में


मेरा हिन्दुस्तान आज भाग्य के फेर से और अपनी अकर्मण्यता , पौरुष हीनता के कारण दाने दाने का मोहताज़ हो रहा है , ऐसे देश को में त्याग धर्म की शिक्षा क्या दूँ , में तो अपने देशवासियों से यही कहूँगा के प्यारे ! कमाओ, खाओ, और धन संग्रह करो ।


स्वामी विवेकानंद ।

१८९३ शिकागो ।

शनिवार, 6 जून 2009

क्या इसे पढ़ कर आपका खून खौलता है





सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,देखता हूँ
मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसि के दिल में है.
दिल में तूफ़ानों कि टोली और नसों में इन्कलाब,होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज.
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनूनतूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैदेखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है

राम प्रसाद बिस्मिल के साथ परिस्थियां उपयुक्त नहीं थीं , भगत सिंह के साथ भी नहीं ,


लहरों के साथ तो कोई भी तैर लेता है , मगर इंसान वो है जो लहरों को चीरकर तैरे ।


हमीं हैं , जिससे वतन को उमीदें हैं , नहीं तो और कौन है ?


गुरुवार, 4 जून 2009

लेख सुझाएँ


आदरनिये ,
मैंने एक चीज़ जो ब्लोगिंग के अंदर महसूस की वो यह थी की ,लोगों ने लिखा तो बहुत ,लेकिन आज कल समय अभाव के कारण ,इतना कोई पढता नही , यह मात्र अपने आपको साबित करने जैसा है , सभी एक दूसरे को नेतिकता का मूल्य समझाते नजर आते हैं ,( इसमे भी कोई दो रायनही की हिन्दी ब्लोगिंग करने वाले ज्यादातर नेतिक ही हैं )।
मेरा उद्देश्य ब्लोगिंग के द्वारा वैचारिक उलझनों को , सुलझाना एवं स्वयं सुलझना हैं ।
कृपया कमेन्ट मे लेख सुझाएँ , ताकि मेरी जानकारी किसी के काम आ सके , और कोई मेरे काम आ सके । ज्ञान वोही जिसका प्रैक्टिकल उपयोग हो सके, नही तो बाजार में बहुत सी पुस्तकें उपलब्ध हैं , और यहाँ विसिट करने वालों में ज्यादातर समझदार लोग ही हैं । इसको किसी प्रकार से अन्यथा न लें ।
धन्यवाद ।

आपका
गगन श्रीवास्तव ।

बुधवार, 3 जून 2009

निर्णय क्षमता विस्तार कैसे हो

प्रिये मित्रों ,
प्राय हम किसी भी उम्र के पड़ाव पर हो ,कई बार निर्णय-अनिर्णय के जाल मैं हम फस ही जाते हैं । यह स्तिथितब ही उत्पन्न होती है जब हमारे पास एक से ज्यादा विकल्प होते हैं । विडंबना यह है की हमारे सवालोंके जवाब हमारे सिवा किसी के पास नही होते , विकल्प ही हमारी समस्या का प्रमुख कारन होते हैं ,
प्रश्न उठता है , विकल्प कब आते हैं ?
देखा जाए तो विकल्प एक मृग मरीचिका (छलावा ) मात्र हैं , हमारी कमज़ोर तयारिओं की अवेध संताने हैं ,
जैसा की हम जानते हैं , की सफलता की राह बहुत आसन नहीं होती , दुनिया मैं मुफ्त कुछ भी नहीं है ।
आसां लगने वाले विकल्प आंगे परेशानी पैदा करेंगे यह ते है , एक समझदार मानुष वो है जो ,सबसे जरूरी कामो को सबसे पहले करे ।
आज आप जिस कंप्यूटर पर काम कर रहे है वो सफलतम मशीन इसलिए है , क्योंकि वो प्रिओरिटी ,जाब सह्दुलिंग नाम की एल्गोरिथम पर काम करता है ।
शांत मन से बैठकर एक कागज़ पर लकीर खींचकर , विकल्प १ व विकल्प २ दोनों को लिखिए ,
लिखने से फायदा यह होगा ,की आंकडे साफ़ साफ़ आपके सामने रहेंगे ।
निहायत ईमान दारी के साथ पूरे मन से दोनों विकल्पों के फायदे और नुक्सान लिखिए ।
मैं यह करूँ तो क्या हो जायगा , क्या नहीं हो जाएगा इतिआदी ।
बुरे से बुरे परिणामो पर विचार कीजिये , मानसिक रूप से तैयार रहिये ।
यकीन मानिये यह तरीका पढने मैं आसान लग सकता है , परन्तु है बहुत काम का ।
टिप्पणी अवश्य करिए ।